राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने गन्ने की खोई से ‘वैनिलिन’ के उत्पादन में सफलता प्राप्त की

डायरेक्टर, नेशनल शुगर इंस्टिट्यूट, प्रोफेसर नरेंद्र मोहन शोध टीम के साथ

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कानपुर | राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर ने गन्ने की खोई से वैनिलिन के उत्पादन में सफलता प्राप्त की। वैनिलिन का सबसे बड़ा उपयोग एक ‘फ्लेवरिंग एजेंट’ के रूप में होता है। विशिष्ट वेनिला स्वाद, आमतौर पर मीठे खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होता है। आइसक्रीम और चॉकलेट उद्योग मिलकर वैनिलिन के कुल उत्पादन का 75% उपभोग करते है तथा कुछ मात्रा मे इसका उपयोग कन्फेक्शनरी और बेकरी में किया जाता है। वैनिलिन का उपयोग सुगंध उद्योग में, इत्र बनाने में, तथा दवाओ की अप्रिय गंध तथा स्वाद को दूर करने, पशुओं के चारे तथा साफ-सफाई उत्पादों में भी  होता है।

समान्यत वैनिलिन, वेनिला बीन के अर्क से रासायनिक यौगिक के रूप में प्राप्त किया जाता है। लेकिन आज 99% वैनिलिन, वैनिला बीन्स से नहीं, बल्कि अन्य स्रोतों से उत्पादित किया जाता है। इसे विभिन्न तरीकों से उत्पादित किया जा सकता है जैसे, गुआयाकोल नामक पेट्रोकेमिकल कच्चे माल से, लिग्निन से, या अन्य बायोमास स्रोतों से। आज, दुनिया के 15% वैनिलिन का उत्पादन लिग्निन से होता है जो बायोमास में उपलब्ध है।

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गन्ने की पेराई के परिणामस्वरूप चीनी कारखानों में प्राप्त होने वाली खोई में लगभग 17 – 25% लिग्निन होता है और शेष सेल्यूलोज और हेमी-सेल्युलोज के रूप में होता है। संस्थान के कार्बनिक रसायन विभाग ने दो साल के शोध कार्य के बाद डॉ. विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव, सहायक प्रोफेसर कार्बनिक रसायन विज्ञान की देखरेख में डॉ चित्रा यादव, अनुसंधान सहायक और ममता शुक्ला, प्रोजेक्ट फेलो की एक टीम द्वारा खोई  मे उपलब्ध लिग्निन से वैनिलिन का उत्पादन करने में सफलता प्राप्त की।

“इस प्रक्रिया में मोटे तौर पर नियंत्रित परिस्थितियों में लिग्निन का क्षारीय नाइट्रोबेंजीन ऑक्सीकरण शामिल था जो लिग्निन के वैनिलिन और अन्य फेनोलिक यौगिकों में टूटने का कारण बनता है। कॉलम क्रोमैटोग्राफी या क्रिस्टलीकरण द्वारा वैनिलिन की शुद्धि की गई। हमने थिन लेयर क्रोमैटोग्राफी और एफटीआईआर स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से उत्पाद की पहचान सुनिश्चित की”, डॉ श्रीवास्तव ने बताया।

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निदेशक, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, नरेंद्र मोहन ने कहा, हमने एक सस्ते स्रोत, खोई’ से वैनिलिन विकसित किया है जो रुपये 2.00-2.50 प्रति किग्रा की कीमत पर उपलब्ध है। वैनिलिन की ईल्ड यानी प्राप्ति को देखते हुए, जो 0.25% है, 1 किलो वैनिलिन का उत्पादन करने हेतु, कच्चे माल की लागत केवल रुपये 800-1000 होगी, जबकि लिग्निन आधारित वैनिलिन का बाजार में मूल्य रु. 7,500-15,000 प्रति किलो है।नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट, कानपुर के निदेशक ने कहा कि केसर के बाद इसे सबसे महंगा मसाला माना जाता है।

संस्थान, ‘दी सुगर टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया’ के आगामी वार्षिक सम्मेलन के दौरान शोध निष्कर्ष प्रस्तुत करेगा तथा उसका पेटेंट भी दाखिल किया जाएगा ।

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