यूपी चुनाव : प्रमुख ओबीसी नेताओं ने गंवाईं सीटें

केशव प्रसाद मौर्या (फाइल फोटो/आईएएनएस)

The Hindi Post

लखनऊ | उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव गुरुवार को संपन्न हो गए जिसमें लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दल ओबीसी नेताओं पर अपना दांव ठोक रहे थे। हालांकि, चुनाव परिणाम चौंकाने वाले हैं क्योंकि कई प्रमुख ओबीसी नेता अपनी सीट बचा नहीं पाए।

सबसे चौंकाने वाली हार भाजपा के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की है जिन्होंने जनवरी में भाजपा में विद्रोह का नेतृत्व किया और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।

विडम्बना यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी फाजिलनगर सीट पर हार गए। यहां भाजपा ने ही उन्हें पटकनी दी।

Swami Prasad Maurya joins SP (1) (1)

मौर्य का अनुसरण करने वाले एक अन्य भाजपा मंत्री धर्म सिंह सैनी भी सहारनपुर में अपनी सीट हार गए।

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राज्य भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रमुख नरेंद्र कश्यप ने कहा, “विपक्ष ने पिछड़ी जातियों में भ्रम फैलाने की कोशिश की, लेकिन यह व्यर्थ रहा और समुदाय भाजपा के साथ खड़ा रहा।”

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की हार भाजपा के लिए एक झटका है जिसने उन्हें उत्तर प्रदेश में ओबीसी के चेहरे के रूप में पेश किया था।

केशव प्रसाद मौर्य अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए जोरदार प्रचार कर रहे थे, एक निर्वाचन क्षेत्र से दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में गए, लेकिन समाजवादी पार्टी की पल्लवी पटेल से अपनी सिराथू सीट हार गए।

समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी भी अपने बांसडीह निर्वाचन क्षेत्र से हार गए।

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यूपीसीसी अध्यक्ष और कांग्रेस के ओबीसी चेहरे अजय कुमार लल्लू को उनकी तमकुही राज सीट पर अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में तीसरे स्थान पर पिछड़ गए।

अपना दल के अलग हुए गुट की अध्यक्ष कृष्णा पटेल, जिन्होंने सपा के साथ गठबंधन में प्रतापगढ़ सीट से चुनाव लड़ा था, अपनी सीट हार गई। उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने अपनी मां के सम्मान में अपने उम्मीदवार को प्रतापगढ़ सीट से वापस ले लिया था।

ओबीसी वर्ग ने 2017 में भाजपा का साथ दिया था। यह समाजवादी पार्टी का वोट जनाधार था। इससे जातियों का पुनर्गठन शुरू हो गया और 2017 में लगभग 60 प्रतिशत ओबीसी ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया।

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अखिलेश ने इस संतुलन को बदलने की कोशिश की और उत्तर प्रदेश की राजनीति को फिर से संगठित करने के उद्देश्य से गैर-यादव ओबीसी वर्ग को लुभाया।

एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “सपा ने यादवों के वर्चस्व वाली पार्टी की छवि बदलने की कोशिश की पर यह भाजपा की संगठनात्मक मशीनरी के सामने काम नहीं कर पाई।”

आईएएनएस

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