बर्ड फ्लू के खौफ के साये में पोल्ट्री इंडस्ट्री, 50 फीसदी गिरा चिकन का भाव
नई दिल्ली | देश की पोल्ट्री इंडस्ट्री पर कोरोना के कहर के बाद अब बर्ड फ्लू के खौफ का साया बना हुआ है। बर्ड फ्लू के खौफ के चलते चिकन और मुर्गों की बिक्री पर भारी असर पड़ा है। खासतौर से उत्तर भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य में मुर्गों की आवाजाही पर रोक लगने से पोल्ट्री इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई है। इंडस्ट्री की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल इस बावत रविवार को केंद्र सरकार से मिलने वाला है।
पोल्ट्री मुर्गों में बर्ड फ्लू के मामले अब तक सिर्फ हरियाणा में मिले हैं। अन्य जगहों पर ज्यादातर जंगली पक्षियों या प्रवासी पक्षियों में बर्ड फ्लू पाया गया है और कहीं-कहीं पोल्ट्री बत्तख में भी पाया गया है।
मगर, नये साल के आरंभ में बर्ड फ्लू का खौफ इस कदर बढ़ गया है कि कारोबारियों की मानें तो मुर्गों और चिकन की मांग 70 फीसदी से ज्यादा घट गई है। पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट रमेश खत्री ने आईएएनएस को बताया कि बीते तीन-चार दिनों से चिकन की बिक्री तकरीबन 70 से 80 फीसदी कम हो गई है जबकि कीमत 50 फीसदी गिर चुकी है और अंडों की कीमत भी करीब 15 से 20 फीसदी टूट चुकी है। उन्होंने बताया कि चिकन की मांग गिरने की मुख्य वजह है कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच एक राज्य से दूसरे राज्य में मुर्गों की आवाजाही पर रोक।
उन्होंने बताया कि हरियाणा में जिन दो फार्म में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है वो दोनों लेयर फार्म है ब्राइलर नहीं। लेयर फार्म में मुगीर्पालन अंडों के लिए किया जाता है जबकि ब्राइलर फॉर्म में कुक्कुटपालन चिकन के गोश्त के मकसद से होता है।
उन्होंने कहा कि वह केंद्र सरकार से बर्ड फ्लू की अफवाहों से पोल्ट्री इंडस्ट्री को बचाने की मांग करेंगे।
पोल्ट्री इंडस्ट्री की तरफ से एक प्रतिनिधिमंडल रविवार को केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से मिलने वाला है जिसमें रमेश खत्री भी शामिल होंगे। पोल्ट्री फार्म संचालक राकेश मन्हास ने भी बताया कि वह सरकार से आग्रह करेंगे कि बर्ड फ्लू को लेकर जो अफवाहें फैल जाती हैं उससे इंडस्ट्री को भारी नुकसान होता है, इसलिए इससे बचाने के उपाय किए जाएं।
केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय भी जिन सात राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि होने की बात शनिवार को कही थी उनमें पोल्ट्री-मुर्गी में सिर्फ हरियाणा में बर्ड फ्लू की रिपोर्ट बताई गई है।
भारत में 2006 से तकरीबन हर साल सर्दियों में एवियन इन्फ्लूएंजा यानी पक्षियों में जुकाम की बीमारी की शिकायत कहीं न कहीं से मिलती रही है और इस बीमारी के प्रकोप से निपटने के तरीके सरकार ने 2005 में ही बना लिए थे जिन्हें प्रभावित क्षेत्रों में अमल में लाए जाते रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में मुर्गा और चिकन खाने के जो तरीके हैं उनसे मानव में बर्ड फ्लू का संचार होने का सवाल ही पैदा नहीं होता है, हालांकि उनका कहना है कि कोशिश यही होनी चाहिए कि बीमार पक्षी न खाएं।
भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त डॉ. प्रवीण मलिक ने आईएएनएस को बताया कि दूषित पोल्ट्री उत्पाद खाने से मानव में एवियन इन्फ्लूएन्जा के वायरस के संचरित होने का कोई सीधा प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा कि सफाई व स्वच्छता बनाए रखने की जरूरत है और रसोई पकाने व प्रसंस्करण के मानक भी एआई वायरस के प्रसार की रोकथाम के लिए प्रभावकारी हैं।
कृषि अर्थशास्त्री और पॉल्ट्री फेडरेशन आफ इंडिया के एडवायजर विजय सरदाना ने बताया कि देश की पोल्ट्री इंडस्ट्री करीब सवा लाख करोड़ रुपये की है जो कोरोना काल में घटकर करीब आधी रह गई है। मतलब पोल्ट्री इंडस्ट्री का कारोबार जो कोरोना का कहर ढाने के पहले करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये का था, वह इस समय घटकर करीब 60,000-70,000 करोड़ रुपये का रह गया है।
कोरोना के कहर से तबाह पोल्ट्री इंडस्ट्री में बीते साल के आखिरी दिनों में जो रिकवरी आई उस पर अब बर्ड फ्लू के खौफ का साया बना हुआ है।
आईएएनएस