आदित्य L-1 अंतरिक्ष यान को L-1 पॉइंट तक पहुंचने में कितने दिन लगेंगे?, इसरो ने क्यों लॉन्च किया है आदित्य L-1 को?
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) | सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-L1 अंतरिक्ष यान शनिवार सुबह भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण राकेट-सी57 (पीएसएलवी-सी57) के साथ रवाना हुआ.
पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण के रॉकेट ने 1,480.7 किलोग्राम वजनी आदित्य-L1 अंतरिक्ष यान के साथ उड़ान भरी. बता दे कि आदित्य-L1 सौर गतिविधियों का अध्ययन करेगा.
321 टन वजनी 44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी-सी57 रॉकेट सुबह 11.50 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से आदित्य-एल1 के साथ रवाना हुआ.
दिलचस्प बात यह है कि यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए सबसे लंबे मिशनों में से एक है.
उड़ान भरने के लगभग 63 मिनट बाद, रॉकेट ने आदित्य-L1 को बाहर निकाल दिया (राकेट से आदित्य-L1 अलग हो गया) और पूरा मिशन लगभग 73 मिनट पर चौथे चरण के निष्क्रिय होने के साथ समाप्त हो गया.
प्रारंभ में, आदित्य-L1 को पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में उत्सर्जित किया जाएगा. तब कक्षा अण्डाकार होगी. जैसे ही अंतरिक्ष यान आदित्य-L1 सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज प्वॉइंट (L1) की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र (एसओआई) से बाहर निकल जाएगा. L1 – वह बिंदु है जहां सूर्य और पृथ्वी – का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बराबर होता है और इसलिए अंतरिक्ष यान किसी भी ग्रह की ओर खिंचा (गुरुत्वाकर्षण) नहीं चला जाएगा.
गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद, क्रूज़ चरण शुरू हो जाएगा और बाद में अंतरिक्ष यान को L1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में इंजेक्ट किया जाएगा. यह वो पॉइंट है जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव बराबर होता है.
पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी की दूरी तय करने में आदित्य-एल1 को लगभग चार महीने (04) लगेंगे.
गौरतलब है कि पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी लगभग 3,84,000 किलोमीटर है.
इसरो ने कहा, “L1 बिंदु के करीब प्रभामंडल कक्षा (हेलो ऑर्बिट) में स्थापित किए जाने के बाद उपग्रह (आदित्य L1 ) को बिना किसी अवरोध के लगातार सूर्य को देखने का मौका मिलेगा. इससे रियल टाइम में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव (सौर गतिविधियों का प्रभाव) को देखने का मौका मिलेगा.”
आदित्य-एल1 मिशन के वैज्ञानिक उद्देश्यों में कोरोनल हीटिंग, सौर पवन त्वरण, कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सौर वातावरण की गतिशीलता और तापमान अनिसोट्रॉपी का अध्ययन शामिल है.
गौरतलब है कि जिस पीएसएलवी रॉकेट से प्रक्षेपण किया गया, वह चार चरणों वाले इंजन का व्यययोग्य रॉकेट है, जो ठोस और तरल ईंधन द्वारा संचालित होता है.
दिलचस्प बात यह है कि एक्सएल वेरिएंट रॉकेट का इस्तेमाल पहली बार भारत के पहले इंटरप्लेनेटरी मिशन – चंद्रयान -1 या चंद्रमा मिशन -1 के लिए किया गया था. बाद में रॉकेट का उपयोग चंद्रयान-2 और मंगल मिशन/मार्स ऑर्बिटर मिशन के लिए किया गया.
शनिवार का पीएसएलवी-एक्सएल संस्करण ने 25वीं बार किसी अन्य अंतरग्रहीय मिशन के लिए उड़ान भरी.
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया, आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान विद्युत चुम्बकीय और कण व चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले गया है.
इसरो ने कहा, “चार पेलोड सीधे सूर्य को देखेंगे और शेष तीन लैग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करेंगे.”
इसरो ने कहा कि अनुमानतः सूर्य की उम्र 4.5 अरब वर्ष है. सूर्य हाइड्रोजन और हीलियम गैसों की एक गर्म चमकदार गेंद है और पूरे सौर मंडल के लिए ऊर्जा का स्रोत है.
“सूर्य का गुरुत्वाकर्षण सौर मंडल के सभी ऑब्जेक्ट्स को एक साथ बांधे रखता है. सूर्य के मध्य क्षेत्र, जिसे ‘कोर’ के रूप में जाना जाता है, में तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है.”
इस तापमान पर, कोर में परमाणु संलयन नामक एक प्रक्रिया होती है, जो सूर्य को शक्ति प्रदान करती है. इसरो ने कहा कि सूर्य की दृश्य सतह (जो सतह नजर आती है) जिसे फोटोस्फीयर के रूप में जाना जाता है, अपेक्षाकृत ठंडी है और इसका तापमान लगभग 5,500 डिग्री सेल्सियस है.
सूर्य पृृृथ्वी का निकटतम तारा है और इसलिए इसका अध्ययन अन्य तारों की तुलना में अधिक विस्तार से किया जा सकता है. इसरो ने कहा, सूर्य का अध्ययन करके, हम अपनी आकाशगंगा के तारों के साथ-साथ विभिन्न अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ जान सकते हैं.
हिंदी पोस्ट वेब डेस्क/आईएएनएस