सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई याचिका, याचिकाकर्ता की मांग- “पोर्न पर लगे बैन, बलात्कार के दोषियों को नपुंसक बनाया जाए…”, क्या कहा कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा. इस जनहित याचिका में महिलाओं की सुरक्षा के लिए देशभर में दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने नोटिस जारी कर मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.
याचिका में मुफ्त ऑनलाइन पॉर्नोग्राफी मटेरियल पर प्रतिबंध लगाने और यौन अपराधों के लिए दोषी व्यक्तियों को नपुंसक बनाने सहित महिलाओं की सुरक्षा के लिए देशभर में दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है.
कोर्ट ने कहा, “हमें इस बात की जांच करनी होगी कि हम दंडात्मक कानून के उद्देश्य को हासिल करने में कहां चूक कर रहे हैं.”
इस याचिका पर अगली सुनवाई जनवरी 2025 में होगी.
महालक्ष्मी पावनी, जो याचिकाकर्ता – सुप्रीम कोर्ट महिला वकील एसोसिएशन (एससीडब्ल्यूएलए) की अध्यक्ष हैं, ने कहा कि संसद ने कड़े कानून बनाए हैं, लेकिन “पुलिस और प्रशासनिक हितधारकों की अनिच्छा, भ्रष्टाचार और ढिलाई” के कारण इन कानूनों का समय पर और प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पाता है और इसलिए अपराधियों में कोई डर नहीं है.
जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश तैयार करने का आग्रह किया गया है.
सुनवाई के दौरान, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया और कहा, “कुछ मुद्दे बिल्कुल नए हैं. हम दृढ़ता से उनकी सराहना करते हैं. लेकिन आप जिन निर्देशों की मांग कर रहे हैं उनमें से कुछ बर्बरतापूर्ण भी हैं. आप सड़कों पर, समाज में आम महिलाओं के लिए राहत मांग रहे हैं, जो असुरक्षित हैं और जिन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.”
बेंच ने कहा, “आपने जो मांग की हैं उनमें से एक सार्वजनिक परिवहन में सामाजिक व्यवहार के लिए दिशानिर्देश जारी करना है, यह एक बहुत ही नया विचार है. यह बेहद महत्वपूर्ण है.”
याचिका में अदालत से बलात्कार जैसे यौन अपराधों के लिए सजा के रूप में रासायनिक तरीके से दोषियों को नपुंसक बनाने की मांग और महिलाओं के खिलाफ ऐसे भयानक अपराधों से जुड़े मामलों में जमानत नहीं देने के नियम को लागू करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है.
इस पर पीठ ने कहा, “हमें इस बात की जांच करनी होगी कि हम दंडात्मक कानून के उद्देश्य को हासिल करने में कहां चूक कर रहे हैं.”