लखीमपुर खीरी हिंसा मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की आलोचना की, पूछा गवाहों के बयान में क्यों हो रही है देरी

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सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो (आईएएनएस)
The Hindi Post

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने गवाहों के बयान दर्ज करने में देरी के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई की, और राज्य सरकार को यह धारणा दूर करने के लिए भी कहा कि वह इस मामले में टाल-मटोल कर सकती है। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा, “आप मामले में टाल-मटोल कर रहे हैं। कृपया इस धारणा को दूर करें।”

उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने प्रस्तुत किया कि घटना पर एक सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दायर की गई है।

पीठ ने जवाब दिया, “नहीं, इसकी आवश्यकता नहीं थी और हमने अभी इसे प्राप्त किया है (सीलबंद लिफ़ाफ़ा).., हमने किसी भी तरह की फाइलिंग के लिए कल रात 1 बजे तक इंतजार किया। लेकिन हमें कुछ भी नहीं मिला।”

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न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि अदालत ने सीलबंद लिफाफे के बारे में कभी कुछ नहीं कहा। साल्वे ने पीठ को सूचित किया कि मामले के 44 गवाहों में से चार ने धारा 164 (न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने) के तहत अपने बयान दर्ज करवाए हैं और अब तक 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

साल्वे ने कहा कि यहां दो अपराध हैं- एक जहां कार किसानों पर चढ़ा दी गई थी और दूसरा लिंचिंग के संबंध में था।

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील पर पलटवार करते हुए कहा, “अन्य गवाहों ने अपने बयान दर्ज क्यों नहीं करवाए?”

पीठ ने पूछा कि अन्य छह आरोपियों का क्या हुआ। इसमें कहा गया है, “आपने हिरासत की मांग नहीं की, इसलिए उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इस मामले में क्या स्थिति है?”

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साल्वे ने कहा कि अन्य गवाहों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं, लेकिन अदालतें बंद हैं।

पीठ ने आगे सवाल किया, “क्या दशहरा की छुट्टी के लिए आपराधिक अदालतें बंद हैं?”

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “यह एक अंतहीन कहानी नहीं होनी चाहिए, बस यही हम चाहते हैं।”

साल्वे ने मामले में समय मांगा। दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर की तारीख तय की।

शीर्ष अदालत ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में दो वकीलों के पत्र के आधार पर एक पेटिशन स्वीकार की थी, इसमें दोनों वकीलों के तरफ से लखीमपुर हिंसा मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की गई थी

आईएएनएस

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