मध्य प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं की हार, ‘त्रिदेव’ की जीत
भोपाल | मध्य प्रदेश में हुए नगर निकाय के चुनाव में कई स्थानों पर चौंकाने वाले नतीजे आए हैं. इन नतीजों में भाजपा के बड़े नेताओं की हार हुई है तो बूथ स्तर पर मजबूती के लिए तैनात किए गए ‘त्रिदेव’ (बूथ अध्यक्ष, महामंत्री और बूथ एजेंट) जीत के नायक बने हैं. राज्य में हुए नगर निकाय के चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान महापौर के चुनाव में हुआ है. वर्ष 2014-15 में भाजपा सभी 16 सीटें (महापौर चुनाव) जीती थी, वहीं इस बार उसके खाते में सिर्फ नौ सीटें आई हैं. कांग्रेस पांच मेयर के पद जीती है और एक स्थान पर आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार व एक निर्दलीय जो भाजपा का बागी है ने मेयर का पद जीत लिया है.
संभवत: राज्य में पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी चुनाव के नतीजों से दोनों प्रमुख राजनीतिक दल – भाजपा और कांग्रेस खुश हैं. दोनों अपने-अपने दावे और तर्क देकर अपनी जीत बता रहे हैं.
क्या बोले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ?
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का कहना है कि पिछले चुनाव में नगर निगम में खाली हाथ रही कांग्रेस इस बार पांच नगर निगम जीती है और दो जगह पार्टी बहुत कम अंतर से हारी है. उन्होंने इन नतीजों को 23 साल में कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बताया.
वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी नतीजों का ब्यौरा जारी करते हुए कहा कि भाजपा ने पिछले चुनावों से बेहतर प्रदर्शन किया है और जहां तक कांग्रेस के विजय उत्सव मनाने की बात है तो उन्हें मनाने दीजिए.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा इस जीत को कार्यकर्ताओं की बूथ पर की गई मेहनत का नतीजा करार दे रहे हैं. उनका कहना है एक-एक बूथ पर हमारे कार्यकर्ता ने मेहनत की और जीत का इतिहास रचा है.
चुनाव के नतीजे
चुनावी नतीजों पर गौर करें तो नगर निगम के 16 महापौरों में से भाजपा 9 स्थानों पर जीती है जबकि उसे मुरैना, ग्वालियर, कटनी, जबलपुर, छिंदवाड़ा, सिंगरौली और रीवा में हार का सामना करना पड़ा है. यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्वालियर-चंबल इलाके में नेताओं के दबाव में महापौर के टिकट दिए गए थे. ग्वालियर में जहां केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की इच्छा के विपरीत भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री की गारंटी पर महापौर उम्मीदवार तय हुआ था, वही मुरैना और रीवा में भी ऐसे ही हुआ. इसी तरह कटनी में एक विधायक के चुनाव जिताने की गारंटी पर उम्मीदवार बनाया गया था. जबलपुर में नेताओं के दखल ने उम्मीदवार तय कराया. ऐसी ही कुछ स्थिति सिंगरौली में रही. कई उम्मीदवारों के नाम का फैसला तो दिल्ली में हुआ क्योंकि राज्य में कई नेता एक नाम पर सहमत नहीं थे.
राज्य में कांग्रेस के जिन नगर निगम में पांच महापौर जीते हैं उनमें से मुरैना और छिंदवाड़ा को छोड़कर भाजपा के वार्ड पार्षद ग्वालियर, जबलपुर और रीवा में कांग्रेस से ज्यादा सीटों पर जीते हैं. ऐसा ही कुछ कटनी और सिंगरौली में भी हुआ है. इस तरह राज्य की 16 में से 14 नगर निगमों में बीजेपी के कांग्रेस से ज्यादा पार्षद हैं.
हार की क्या बनी वजह?
एक तरफ जहां नेताओं के दवाब में महापौर उम्मीदवारों का चयन हार का कारण बना, तो वहीं दूसरी ओर देखें तो भाजपा ने बूथ विस्तारक अभियान के तहत पूरे प्रदेश में ‘त्रिदेव’ अर्थात तीन जिम्मेदार लोग बूथ अध्यक्ष, बूथ महामंत्री और बूथ एजेंट तैयार किए थे, जिनकी जिम्मेदारी बूथ स्तर पर थी. नतीजा यह हुआ कि पार्टी वार्ड में बड़ी तादाद में जीती.
चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को 255 नगर परिषद में से 185 में स्पष्ट बहुमत मिला है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के खाते में स्पष्ट जीत 24 परिषदों में आई है. इसके साथ ही राज्य की 76 नगर पालिका में से 50 पर भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है जहां वह अध्यक्ष बना सकती है वहीं कांग्रेस कुल 11 नगर पालिका में पूर्ण बहुमत हासिल कर पाई है.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि, नगरीय निकाय चुनाव में महापौर को लेकर जो नतीजे आए हैं, वो इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि भाजपा में ‘देव’ यानी बड़े नेता हार गए हैं और ‘त्रिदेव’ जिन पर बूथ की जिम्मेदारी थी उन्होंने पार्टी को जीत दिलाई हैं. यही कारण है कि भाजपा के पार्षद बड़ी संख्या में जीते हैं तो दूसरी ओर सात स्थानों पर पार्टी ने महापौर के पद गंवाए है.
आईएएनएस