मुख्तार अंसारी का एक प्रतिष्ठित परिवार से अपराध की दुनिया तक का सफर

मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो | फोटो क्रेडिट: आईएएनएस)

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लखनऊ | मुख्तार अंसारी एक प्रतिष्ठित परिवार से थे मगर बाद में उन्‍होंने इसके विपरीत अपनी छवि बना ली.

गैंगस्टर से नेता बने 63 वर्षीय मुख्तार अंसारी की गुरुवार की शाम दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. वह मुख्तार अहमद अंसारी के पोते थे, जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय एक प्रमुख शख्सियत थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे.

30 जून, 1963 को उत्तर प्रदेश के यूसुफपुर में जन्मे मुख्तार अंसारी ने अपराध की गलियों से लेकर सत्ता के गलियारों तक का सफर किया.

अंसारी ने 1980 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखा. 1990 के दशक में संगठित अपराध में उनकी भागीदारी बढ़ी. मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर जिलों में उनका प्रभाव था.

उनकी ब्रिजेश सिंह के साथ प्रतिद्वंद्विता थी. वह कोयला खनन, रेलवे निर्माण और अन्य क्षेत्रों में ठेकेदारी के काम में दिलचस्पी रखते थे. इसी को लेकर उनकी ब्रिजेश सिंह से अदावत थी.

साल 2002 में उनके काफिले पर घात लगाकर हमला किया गया था जिसमें उनके तीन सहयोगी मारे गए थे.

अंसारी बाद में राजनीति में उतर गए. उन्होंने 1996 में मऊ से विधानसभा चुनाव लड़ा था और जीते भी थे. इसके बाद वह पांच बार विधायक बने.

कुछ लोगों को अंसारी में रॉबिन हुड की छवि दिखती थी तो बाकियों को वो अपराधी नजर आते थे.

अपने राजनीतिक कार्यकाल के दौरान वह बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़े रहे. उन्हें ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में चित्रित किया गया था. जब बसपा ने उन्हें निकाल दिया तो मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ मिलकर “कौमी एकता दल” का गठन किया था.

अंसारी का जीवन कानूनी परेशानियों से भरा रहा. साल 2005 में जेल में बंद होने के बाद से उन्हें 60 से ज्‍यादा मामलों में आरोपों का सामना करना पड़ा.

उनके आपराधिक रिकॉर्ड में हत्या, अपहरण और जबरन वसूली के आरोप शामिल थे.

अप्रैल 2023 में उन्हें भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी. मार्च 2024 में उन्हें फर्जी हथियार लाइसेंस रखने के मामले में उम्रकैद की सजा मिली.

हिंदी पोस्ट वेब डेस्क/आईएएनएस

 


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