हेरोइन रखने के आरोप में 20 साल जेल में काटे, कोर्ट में साबित हुआ साधारण पाउडर, रिहा

सांकेतिक तस्वीर (हिंदी पोस्ट)

The Hindi Post

बस्ती | इस मामले में न्याय इतनी देरी से मिला है कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह मिला ही नहीं है. आइए आपको बताते है कि यह मामला है क्या. दरअसल, अब्दुल्ला अय्यूब ने एक ऐसे अपराध के लिए 20 साल जेल में काटे जो उन्होंने किया ही नहीं था.

उन्होंने पुलिस कांस्टेबल खुर्शीद को घर से निकालने की कीमत चुकाई है. खुर्शीद अब्दुल्ला के घर में किराए पर रहता था, लेकिन किराया नहीं चुकाता था.

यह घटना मार्च 2003 की है. खुर्शीद को घर से निकालने के तुरंत बाद अब्दुल्ला अय्यूब 25 ग्राम ‘हेरोइन’ के साथ पकड़े गए थे. इस ‘ड्रग’ की कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी.

अब्दुल्ला ने गुहार लगाई कि वो ड्रग सप्लायर नहीं थे. उनके पास हेरोइन की थोड़ी भी मात्रा नहीं थी. उनके खिलाफ साजिश की गई थी. सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई थी. इस कारण वो जेल से बाहर नहीं आ पा रहे थे.

अब्दुल्ला अय्यूब के वकील प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि पुरानी बस्ती थाने की पुलिस ने सबूत के तौर पर हेरोइन पेश कर उनके मुवक्किल को झूठे मामले में फंसाया था और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था.

यह तब हुआ था जब अय्यूब ने खुर्शीद को अपने घर से निकाल दिया था.

खुर्शीद ने अपने पूर्व मकान मालिक अब्दुल्ला को फंसाने के लिए सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ला के साथ मिलकर साजिश रची थी.

इन पुलिस अधिकारियों ने न केवल अय्यूब के पास नकली हेरोइन रखवाई, बल्कि उसे फंसाने के लिए फॉरेंसिक सबूतों के साथ भी छेड़छाड़ की.

प्रेम प्रकाश, “अब 20 साल बाद अब्दुल्ला अय्यूब जेल से बाहर आ गए है. वो बेदाग है. अदालत में यह साबित हो गया है कि ‘नारकोटिक पदार्थ’ जिसे अब्दुल्ला के पास से रिकवरी के तौर पर दिखाया गया था वो वास्तव में दुकानों में 20 रुपये में मिलने वाला साधारण सा पाउडर था.”

श्रीवास्तव के मुताबिक, “जब ट्रायल शुरू हुआ तो बस्ती की फॉरेंसिक लैब ने पाउडर में हेरोइन की मौजूदगी की पुष्टि की थी.”

हालांकि जब कोर्ट ने “हेरोइन” के इस सैंपल को लखनऊ की लैब में भेजा तो पता चला कि ये हेरोइन थी ही नहीं. इसके बाद सैंपल को दिल्ली स्थित लैब में भेजा गया, जहां पुलिस ने सबूतों से छेड़छाड़ की.

बाद में, जब अदालत ने लखनऊ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों को तलब किया, तो उन्होंने पुष्टि की कि “हेरोइन” का सैंपल वास्तव में नकली था. इसका रंग भूरा हो गया था जबकि हेरोइन कभी भी किसी भी मौसम में अपना रंग नहीं बदलती.

इसके बाद जस्टिस विजय कुमार कटियार ने गलत तरीके से आरोपी बनाये गए पीड़ित अब्दुल्ला को बरी कर दिया. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस ने पूरे मामले को गलत तरीके से पेश किया और अभियोजन पक्ष ने अदालत का समय बर्बाद किया.

हालांकि, अभी तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है, जिन्होंने पूरा केस फर्जी गढ़ा था.

हिंदी पोस्ट वेब डेस्क/आईएएनएस


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