किसान आंदोलन का आज 74वां दिन, रणनीति में बदलाव

Photo: IANS

The Hindi Post

नई दिल्ली | देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं — सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों के आंदोलन का रविवार को 74वां दिन है। 26 जनवरी के बाद आंदोलन की रणनीति में अब कुछ नया बदलाव दिखने लगा है। मसलन, किसान महापंचायतों का दौर, धरना प्रदर्शन में शामिल होने वाले किसानों में सब्र, लंबी अवधि तक विरोध प्रदर्शन जारी रखने की योजना सहित रणनीतिक बदलाव के साथ आंदोलन तेज करने की मुहिम में किसान संगठनों के नेता जुटे हुए हैं। 26 जनवरी के बाद किसान आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए भले ही पंजाब, हरियाणा व अन्य प्रदेशों के दिग्गज किसान नेताओं का दिमाग लगा हो, मगर आंदोलन को नई धार देने का काम उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत ने किया है। टिकैत इस समय महापंचायतों में व्यस्त हैं।

दिल्ली के बॉर्डर पर धरना स्थलों से महापंचायतों का रुख करने के किसान नेताओं की रणनीति के संबंध में पूछने पर एक छोटू भैया किसान नेता ने बताया कि धना स्थलों पर बैठने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि धरनास्थल अब मीडिया में सुर्खियां नहीं बटोर रहा है, इसलिए रणनीति में बदलाव आया है। एक अन्य नेता ने बताया कि गांव के लोगों में जागरूकता लाने और किसान आंदोलन के प्रति उनका समर्थन पाने के लिए महापंचायत जरूरी है।

भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत रविवार को हरियाणा के चरखी दादरी में होने जा रही महापंचायत में शामिल होंगे। इससे पहले जींद में हुई महापंचायत में उनके समर्थन में भारी भीड़ जुटी थी।

दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संगठनों का समूह संयुक्त किसान मोर्चा ने 1 दिन पहले शनिवार को 3 घंटे का चक्का जाम किया था, हालांकि देश की राजधानी दिल्ली और सबसे ज्यादा किसानों की आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड में चक्का जाम का आयोजन नहीं था। लेकिन पंजाब और हरियाणा में इस चक्का जाम का व्यापक असर दिखा, वहीं देश के अन्य प्रांतों में भी छिटपुट जगहों पर चक्का जाम रहा।

पंजाब में चक्का जाम को सफल बनाने के लिए सिंघु बॉर्डर से पहुंचे प्रदेश के एक बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन लाखोवाल के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह लाखोवाल ने आईएएनएस को बताया कि आंदोलन की रणनीति में जो बदलाव दिख रहा है वह आंदोलन को लंबे समय तक चलाने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा पहले दिल्ली के बॉर्डर पर इससे धरना स्थल पर जो लोग थे उनमें अनेक ऐसे लोग शामिल थे, सुबह आते थे और शाम को लौट जाते थे। अब जो लोग आ रहे हैं वो 10 दिन बैठने के लिए आ रहे हैं। उन्होंने कहा जब सरकार से बातचीत का दौर चल रहा था तब एक उम्मीद रहती थी कि आगामी वार्ता में कुछ ना कुछ होगा और आंदोलन समाप्त हो जाएगा। मगर अब वार्ता का दौर भी टूट चुका है और आंदोलन समाप्त होने की कोई भी संभावना दिख नहीं रही है, इसलिए अब लोग आ रहे हैं उन्हें कम से कम 10 दिन बैठना है।

उन्होंने कहा इसमें कहीं दो राय नहीं कि पहले कुछ लोग तमाशबीन भी थे मगर अब जो हैं वो पूरे जज्बे के साथ किसान आंदोलन में शामिल हैं। इससे आंदोलन मजबूत हुआ है।

आईएएनएस

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